छह सौ साल ईसा पूर्व का, वैशाली शुभ धाम।
कुण्डग्राम में जन्म हुआ, बर्धमान था नाम।।
थी चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी,क्षत्रिय सिद्धार्थ द्वार।
त्रिशला का पावन गर्भ हुआ, महावीर अवतार।।
बनी यशोदा पत्नी जिनकी, सुंदर कुलीन नार।
प्रियदर्शिनी तनुजा रूप में, उनका था परिवार।।
जब मन माया में रमा नहीं, विचलित हुए अशांत।
था बारह वर्ष तक तप किया, वसनहीन संभ्रांत।।
तीस वर्ष में घर को छोड़ा, ग्रहण किए संन्यास।
कठिन तपस्या कैवल्य बने, काट मोह की फॉंस।।
अरिहंत निर्ग्रन्थ का जिसने, पाया है उपनाम।
वीर महावीर के नाम से, जाने जगत तमाम।।
चौबीसवें तीर्थंकर बनकर, किया जैन उत्थान।
पंचशील सिद्धांत बताए, नैतिकता का ज्ञान।।
जियो और जीने दो जिनके, कथनों का था सार।
भाव रहे समदर्शी सबमें, आडंबर धिक्कार।।
पंच महाव्रत पालन करते, तब कटते हैं क्लेश।
ब्रह्मचर्य है श्रेष्ठ सभी से, उनका था संदेश।।
धन्य नालंदा का पावापुरी, जहॉं लिए निर्वाण।
पाठक वंदन करते उनको, पाने को कल्याण।।
रामकिशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज, पटना