माँ बिना जहाँ भी कुछ नहीं – अवनीश कुमार

 

माँ

तेरा वो दुलारना

तेरा वो पुचकारना

तेरा वो लोरी सुनाना

तेरा वो घिस-घिस बर्तन माँजना

उससे निकले मधुर संगीत सुनना

तेरा वो प्यार से डाँटना

कभी चुप रहकर मन को भाँपना

सिर के बाल फेरना

अनकही बातों को सुनना

कंघे करना, बस्ते, टाई गले में लटकाना,

टिफिन देना और रोज वही बात कहना

टिफिन पूरा फिनिश करना

तेज कदमों से बस तक छोड़ने जाना

बस स्टॉप तक आना

एक लंबी साँस भरना

हिलते हाथों से बाय करना

छुट्टी होने से पहले ही बस स्टॉप पहुँचना

बस का थोड़ी देर होने पर हीं बेचैन हो जाना

अनगिनत सवालों से घिर जाना

फिर बस का आना

और बेटे को देख मुस्काना

फिर उंँगली थामे घर जाना

आते- जाते

नित नए- नए सबक संस्कार सिखाना

राजा बेटे को कल की चुनौतियों के लिए तैयार करना

उसे नित-नित गढ़ना

उसे तपिश में तपते देख भी विचलित न होना

उसके ढहते विश्वास देख स्व-संबल बन जाना

उसे हर क्षण अपने गले का हार बनाए रखना

बस इतना भर ही

माँ का फर्ज थोड़े हीं है।

माँ का प्यार पूछो उससे

जिसके हिस्से में माँ नहीं।

जिसके किस्से में माँ नहीं।

माँ है तो जहाँ है,

जहाँ भी कुछ नहीं यदि

माँ सौभाग्य में नहीं।

अवनीश कुमार
व्याख्याता
बिहार शिक्षा सेवा

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