माटी का यह बना खिलौना,
एक दिन माटी में मिल जाएगा।
कोई नहीं होगा हम सबके संग,
केवल धर्म-अधर्म साथ जाएगा।
कुछ तो अच्छा कर ले प्यारे,
जो जीवन भर काम आएगा।
अंत समय में तेरा कोई नहीं,
तेरे साथ नहीं रह पाएगा।
चाहे कोई बड़ा या छोटा हो,
उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
जो समय है जाने का लिखा हुआ,
इसमें कोई पेंच नहीं अड़ता।
कर्म, अकर्म, विकर्म के बंधन ही,
ये तीनों कर्म के भेद कहलाते हैं।
हम अपने किसी कर्म को कर,
केवल दिल ही तो बहलाते हैं।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जगत में,
यही चार, मानव जीवन के पुरुषार्थ हैं।
इस मर्म को हम सब अंगीकार करें,
सच में यही मानव जीवन के निहितार्थ हैं।
बुद्धि, विवेक हमारे ऐसे हों,
जिसका नित दिन हम सदुपयोग करें।
जगने से सोने तक के समय का
न कोई कभी दुरुपयोग करें।
यह समय अमूल्य है हर मानव का,
इसका युक्तिसंगत सब प्रयोग करें।
जीवन जीना है मानवता का,
कुछ परहित भी उपयोग करें।
कभी दूर न जायें अपनी माटी से,
हमें सबसे बड़ी यही अर्जी है।
जीवन को करें कभी निष्प्रभ नहीं,
यही विधाता की भी मर्जी है।
जीवन सफल उसी व्यक्ति का,
जो पर के काम आया करे।
पर दोष, निंदा, चुगली में,
समय कभी जाया न करे।
कोई तो आकर वैसा काम कर वंदे,
जो तेरा भव सागर पार कराएगा।
हर जीव मरणशील है प्यारे ,
पर तू नाम अमर कर जाएगा।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर