राही-एस. के. पूनम

Shailesh

Shailesh

राही

हे राही!
जिस राह पर चल पड़े हैं क़दम,
उस राह को कभी छोड़ना नहीं,
राहें होगी हजारों कंटकों से भरी,
पर अपने अधरों पर रखना मुस्कान।
हे राही!
कभी नदियां लाएगी दु:ख के अवसादें,
कभी सागर में उठेगी खुशियों की लहरें,
कभी साहिलों से टकरा टूटेंगे कुछ सपने,
पर राही सच होगें तेरे कुछ अपने सपने।
हे राही!
अँधेरी रातों ने अपनी बाँहें फैलाई,
पर जुगनुओं ने चिराग जला दिए,
तिमिर पथ पर आश का दीप जला गए,
तेरी जिंदगी को कुछ नसीहत दे गए।
हे राही!
तम का अवसान उषा के आगवन से,
धरा उज्जवल हो गई स्वर्ण किरणों से,
समाहित हो गई तरुणाई रोम-रोम में,
राही बढ़ते जा अपनी मंजिल की ओर।
हे राही!
जब होने लगे तपिश का एहसास,
ठहर जाना किसी तरु की छाँव में,
होगा एहसास निर्विकार स्नेह भावों का,
चलते-चलते उसे पीला देना नीर की बूंदे।
हे राही!
चलते-चलते जब करना हो कभी विश्राम,
किसी पाठशाला के प्रांगण में ठहर जाना,
वहाँ मिल जाएगा प्रदीप्त ज्ञान का दीप,
तम भरे उर में भर लेना सत्य का पाठ।

एस. के. पूनम

पटना

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