बैलगाड़ी-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra

Jainendra

बैलगाड़ी

कच्ची सड़क की सबसे प्यारी,
बैलगाड़ी है सबसे सुंदर सवारी।
उबड़-खाबड़ रास्तों पर भी,
शान से चलती बनाकर धारी।।
आवागमन का था एकमात्र सहारा,
राजा हो या कोई रंक बेचारा।
थोड़ी सी दूरी तय करने में,
निकल जाता उनका दिन सारा।।
चलती है यह बैलों के सहारे,
लकड़ी का पहिया दोनों किनारे।
भूखे-प्यासे मंजिल तक इसको,
पहुंचाते हैं इसको दो पशु बेचारे।।
बीच रास्ते में जब टूटती धूरी,
यात्रा तब रह जाती है अधूरी।
सारा दिन यूं ही बीत जाता,
चाहे कितना भी हो काम जरूरी।।
है इसकी सबसे अलग पहचान,
हाथों में थामें डोरी गाड़ीवान।
टन-टन गले में घंटी बजती,
दोनों बैल चलते जब सीना तान।।
आज मानव ने बहुत विकास किया है,
आधुनिक यंत्रों पर विश्वास किया है।
तीव्रगामी में अनेकों वाहनों का,
निर्माण करने का प्रयास किया है।।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’,
पटना, बिहार

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