अन्नदाता-सुरेश कुमार गौरव

Suresh kumar

Suresh kumar

अन्नदाता

जब तक कि मिट्टी से सने नहीं, अन्नदाता के पूरे पांव-हाथ!
सदा खेतों में देते रहते ये, बिना थके-रुके, दिन-रात साथ!!

हल, बैल, कुदाल, रहट, बोझा, पईन, पुंज और पगड़ी है शान!
देश के लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था इन्हें जय किसान!!

हरित क्रांति के कुशल कर्मकार,और धन्य हमारे ये अन्नदाता!
देश के अधिसंख्य जनों के सहारा हैं, ये भारत भाग्य विधाता!!

न जाड़े की ठंढ़, गर्मी की तपस, बाढ़ की विभीषिका से डर!
अपनी मेहनत और खून-पसीने से, डटे रहते सदा खेतों पर!!

बेमियादी बर्षा, ओले और सूखे से पड़ती फसल की मार!
अपने अंदर सभी दुख पीड़ाओं को, कर जाते हैं ये पार!!

कृषक वर्ग को मेहनत का, फिर नहीं मिल पाता उचित दाम!
फिर भी जिद पर अड़के रहकर करते रहते ये अपने काम!!

समाज और देश हित में तो, मिले इन्हें कृषक फल सम्मान!
अधिक कहां मांगते ? बस मांगते ये, अपने कुछ प्रतिमान!!

हे भारत के अन्नदाता! आप हैं देश की आन-बान और शान!
लुटा देते हैं देश जनों की खातिर, अपनी खुद की भी जान!!

जिन्होंने सींचा इस देश का इतना सुंदर व उपजाऊ चमन!
देश के सभी अन्नदाताओं को है सादर नमन!!

मेरी स्वरचित मौलिक रचना
सुरेश कुमार गौरव
@ सर्वाधिकार सुरक्षित

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