मैं हिम्मत हूँ-विजय सिंह नीलकण्ठ

मैं हिम्मत हूँ 

धैर्य भी हूँ दवा भी हूँ 
मानव जीवन का सब कुछ हूँ 
बिन मेरे न कुछ भी संभव 
कहलाता मैं हिम्मत हूँ। 
मुझसे ही मिलती ताकत है 
मुझसे ही मिलती शोहरत है 
मानव तो मानव है  
मुझपर इटलाता कुदरत है।
असाध्य बीमारी वाले भी 
मेरे बल पर ही जीते हैं 
हार नहीं माने जीवन में 
जीवन सुख रस को पीते हैं। 
आँधी व तूफानों से 
लड़ लड़कर आगे बढ़ते हैं 
पाषाणों को ठोकर मार मार 
स्व लक्ष्य प्राप्त भी करते हैं। 
रहता सब जीवों के अंदर 
जिसने न मुझको पहचाना 
असफल दुःखी हो इस भू पर 
न सुख का स्वाद कभी जाना। 
बड़े-बड़े योद्धाओं को 
मेरे बल पर ही जीत मिली 
जिसने मुझको कमतर आँका 
जीतकर भी हार मिली।
गर पृथ्वी में न बसता मैं  
गौरी का अंत न हो पाता 
हरदम कैदी जीवन जीकर 
काल कोठरी ही पाता। 
जग में जिसने भी नाम किया 
सदा साथ मुझको रखा 
रखो मुझे मन के अंदर 
जीत होगी सुन लो पक्का।
विजय सिंह नीलकण्ठ 
सदस्य टीओबी टीम 

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