कुदरत का कहर- जय कृष्णा पासवान

Jaykrishna

कुदरत किया कहर वर्षाया,
प्रकृति संपदा बचाने को ।
“स्वच्छ मन पावन रिश्ता”
निर्मल गंगा बहाने को ।।
पाप की पुंजी भर गया,
मानवता केअस्तित्व मिटाने को ।
“हवा का एक झोंका कोराना- बना”दिन में तारे दिखाने को।
अमीर खाया और पचाया ,
घुमा दुनियां और संसार ।।
कोराना बनकर देश घुसा,
तबाह किया घर परिवार।
“लाश बना दिया सबको”
कब्र में एक-एक दिया जलाने को”घर आंगन सब सुना हो- गया ”
“हे प्रभु “तेरी चमत्कार भर पाने को ।।
दुख:यारी बिलख रहा जग में,
इसकी कोई कद्र नहीं ।
भूखा प्यासा आशियाना ढूंढ़ रहा “राजा को इसकी ख़बर- नहीं “।।
हर कर्मों का हिसाब तेरा वक्त लेगा”जो लगा है पग-पग आने में”।
सियासत की दीपक टिम टिमाने लगा ,
जनता की ज्योत जगाने में।।
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जय कृष्णा पासवान के लेखनी से प्रस्तुत है ये कविता
सहायक शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट (बांका

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