बचपन-राकेश कुमार रंजन

बचपन

न जाने क्यों अब यादें आती है बचपन की।
वो मीठे-मधुर संबंध बालसखा की
वो कहानी किस्से सुनना दादी अम्मा की
न जाने क्यों अब यादें आती है बचपन की।।
वो बात-बात पर रूठना फिर मनाना अंदाज माँ की
वो सारी बदमाशियों को पापा से छिपाना अंदाज माँ की
न जाने क्यों अब यादें आती है बचपन की।।
वो बालपन नटखट मैं दुलारा अपनी माँ की
वो मीठी मुस्कान के साथ हृदय से लगाना माँ की
न जाने क्यों अब यादें आती है बचपन की।। वो लड़ना-झगड़ना दीदी के साथ की
वो फिर भी खेलना दीदी के साथ की
न जाने क्यों अब यादें आती है बचपन की।। वो धूल-मिट्टी में खेलना डांटे सुनना माँ की
वो थके-हारे सो जाना गोद में माँ की
न जाने क्यों अब यादें आती है बचपन की।। वो हर जिद्द को पुरा करना माँ-पिता की
वो बिना भूख के भी खिलाना माँ-पिता की
न जाने क्यों अब यादें आती है बचपन की।। वो देर तक सोना और प्यार से जगाना माँ की
वो रोज अपने हाथों से नहलाना माँ की
न जाने क्यों अब यादें आती है बचपन की।। वो माथे पर काला टीका लगाना माँ की
वो हर बुरी नजर से बचाना माँ की
न जाने क्यों अब यादें आती है बचपन की।। न जाने क्यों अब यादें आती है बचपन की…….

~ राकेश कुमार रंजन
उ.मा.वि. रंगदाहा मझुआ
फारबिसगंज, अररिया

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