बाल मजदूर- अश्मजा प्रियदर्शिनी

Ashmaja Priyadarshini

अपने बचपन को खोता कितना वह लाचार।
मलिन सी काया,दुर्बल छवि,जीर्ण- शीर्ण आकार।
अत्यंत आवश्यक प्यासे को पानी भूखे को आहार।
मांसाहार नहीं,उसे भोजन मिल जाए शाकाहार।
पर लोगों का उस मासूम से कैसा अनुचित व्यवहार।
गरीबी में पनपती दुर्गति के दुर्विचार।
जीवन में लटकती संकटमोचन तलवार।
जिसके जीने का होता ना कोई सुंदर आधार।
व्यवस्था की जंजीरों से जकड़ा जीवन जीता निराधार।
बाल मजदूरी ऐसा असाध्य विकार।
अठन्नी चवन्नी कहलाता ना मिलता उचित संस्कार।
ना मां की ममता ना पिता का प्यार दुलार ।
जीवन के झंझा बातों को सहता वह प्रहार।
उसके जीवन में सुख के ना होते कोई आसार।
, भूख की आग मिटती नहीं जीवन उसका लाचार।
जीवन जीने के लिए करता वह मेहनत अपार।
नन्हा नादान कितना सहता अत्याचार।
नित्य नवीन काज करता ढूंढता वह कारोबार।
मेहनत का उचित फल नहीं मिलता श्रम जाता बेकार।
वह तो विवशता की जंजीरों में जकड़ा जीवन जीता निराधार।
है बाल मजदूरी ऐसा असाध्य विकार।
शिक्षा से होता दूर जीवन में न कोई आधार।
बाल मजदूरी रोकथाम के कानून बनाती सरकार।
बाल मजदूरी का विरोध हमें करना होगा,
रोकना होगा मासूमों के साथ अनुचित व्यवहार।
राइट टू एजुकेशन को बनाना है आधार।
कोयले की खदानों या चूड़ी की फैक्ट्री।
हर क्षेत्र से इन बाल श्रमिकों को निकालना होगा,
बनाना होगा इन्हें राष्ट्र का कर्णधार।
बाल मजदूरी खत्म करना होगा
मिटाना होगा यह असाध्य विकार।
तब नहीं होगा मासूम का जीवन निराधार।
नव चेतना एवं अथक प्रयास से सपने होंगे साकार।

रचनाकार:
अश्मजा प्रियदर्शिनी पटना,बिहार

Leave a Reply