मृत्यु -गिरीन्द्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

मृत्यु अटल है, शरीर की,
मरण असम्भव, जमीर की,
मृत्यु यदि मिले सुमृत्यु तो,
देश हित, लोक हित में हो,
यह मृत्यु अमर बना देती है,
उच्च विचार, उच्च आदर्श की
मृत्यु कदापि नहीं होती है,
कुछ लोग जो दे जाते हैं जग को,
मृत्यु उनकी कदापि नहीं होती है,
हे नर ! मरने के लिए तुम नहीं आये हो,
तू तो मरकर भी अमर हो जाने आये हो,
किन्तु जो एक बार ही मरते हैं,
वे लोग ही अमर हो जाते हैं,
अंतरात्मा विरुद्ध कार्य जो करते हैं,
वे व्यक्ति बार-बार मरा करते हैं,
वीर पुरुष सदैव मृत्यु से प्रेम करते हैं,
सुमृत्यु पा लोग नवजीवन पाते हैं ।
गिरीन्द्र मोहन झा, +2 शिक्षक, +2 भागीरत्ग उच्च विद्यालय, चैनपुर-पड़री, सहरसा*

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