सम्मान-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

Jainendra

सम्मान

जो दूसरों का करता सम्मान,
जग में उसका बढ़ता है मान।
दूसरों की सम्मान जो करता,
अपना जीवन उसके नाम है करता।
सुख-दुःख की परवाह किये बिना,
सबके हित में काम है करता।
आगे बढ़ता है सीना तान,
जग में उसका बढता है मान।
राजा-रंक हो या दानी-भिखारी,
सभी होते सम्मान के अधिकारी।
ऊँच-नीच हो या कामी-क्रोधी,
अपनी इज्जत है सबको प्यारी।
सारे जीव हैं एक समान,
जग में उसका बढ़ता है मान।
खतरों से वह कभी न डरता,
विपत्ति में बनता दुःखहर्ता ।
शत्रु-मित्र में भेद किये बिना,
पीठ पीछे भी चर्चा करता ।
उसे न होता तनिक अभिमान,
जग में उसका बढ़ता है मान।
भूखा-प्यासा हो कोई प्राणी,
श्रेष्ठ ब्राह्मण हो या अज्ञानी।
जाकर पास निराश न होता,
सबका उपकार करता स्वाभिमानी।
हमेशा रखता सबका ध्यान,
जग में उसका बढ़ता है मान।
खतरों के वह आग में खेले,
अपना दुःख वह हसँकर झेले।
साथ किसी की यदि न मिलता,
कर्ण, एकलव्य सा चले अकेले।
सबसे अलग उसकी पहचान,
जग में उसका बढ़ता है मान।
सम्मान-गुण जिसे दिया विधाता,
वह दुश्मन को भी दोस्त बनाता।
बडे-छोटे का भेद मिटाकर,
दुनिया में सबको मीत बनाता।
जड़-चेतन होता एक समान,
जग में उसका बढ़ता है मान।
सुकरात, गाँधी ने जान भी देकर,
दुश्मन को सम्मान भी देकर।
सत्य, धर्म का पाठ पढ़ाया,
जहर को पी, गोली भी खाकर।
दोनों दुनियाँ में बने महान,
जग में उसका बढ़ता है मान।
सबकी सेवा हो कर्म हमारा,
जीवों का सम्मान हो धर्म हमारा।
राम, कृष्ण के वंशज हो तुम,
बेसहारों का तुम बनो सहारा।
यही कहता है गीता का ज्ञान,
जग में उसका बढ़ता है मान।

जैनेन्द्र प्रसाद “रवि
बाढ़ 

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