अनुराग समर्पित-दिलीप कुमार गुप्त

अनुराग समर्पित 

धवल अन्तःकरण हो जागृत
उपहास किंचित न हो प्रस्फुटित
मिथ्या आचार सदा विसर्जित
मन कर्म वाणी हो सदा सुसज्जित। 

उर मैत्री भाव हो स्पंदित
अश्रु प्रेम नैनन हो निःसृत
नर में नारायण हों दर्शित
नारी में मातृ भाव हो पुलकित। 

लौकिक ज्ञान से हों परिपूरित
आध्यात्मिकता पावन पुनीत
आस्था संग मन मंदिर सुगंधित
समर्पण अहर्निश हों प्रज्जवलित। 

निराशा कुंठा दंभ द्वेष क्षरित
शुभ संग अशुभ हो चिर गलित
प्रीति हो अनवरत सुपथ चयनित
परिष्कृत आत्म हो परमात्म ध्वनित। 

हर कर्म हो प्रभु समर्पित
तन मन शतदल अभिरंजित
सत्य प्रवृत्तियाँ हों प्रोत्साहित
श्वास श्वास आराध्य हों मुखरित। 

उर प्रकोष्ठ हो नेह निखरित
मानवता का व्योम प्रकाशित
परहित प्रतान जीवन हो धारित
आर्य संतति जय हो उदघोषित। 

पर पीड़ा से चित्त हो द्रवित
मनुज में मनुजता उद्घाटित
अन्तर्मन सच्चिदानंद तरंगित
नश्वर जग हरि अनुराग समर्पित। 

दिलीप कुमार गुप्त
प्रधानाध्यापक
मध्य विद्यालय कुआड़ी अररिया

Leave a Reply