मैं धन हूँ-भवानंद सिंह

Bhawanand

Bhawanandमैं धन हूँ

मैं धन हूँ
किसी के पास कुछ भी नहीं,
किसी के पास बहुत ज्यादा
किसी के पास थोड़े कम हूँ ।

मैं उनके पास रहता हूँ
जो परिश्रमी और मेहनती है,
कुछ लोग बिना संघर्ष के ही
मुझे हासिल करना चाहता है ।

बिना परिश्रम किए हुए
रहता नहीं मैं किसी के पास,
चाहे वह कितना ही देखे
आने की मेरी वो आस ।

सुख समृद्धि हम पर निर्भर है
जीवन को है इसका एहसास,
मान प्रतिष्ठा का हूँ रखवाला
सारी खुशियों का हूँ खजाना ।

कृष्ण-सुदामा की जैसी दोस्ती
कराता हूँ मैं खूब यहाँ,
टूट जाए विश्वास अगर तो
दुश्मनी भी कराता हूँ खूब ।

है इतिहास गवाह इस बात का
लड़ी गई कितनी ही लड़ाईयाँ,
मुझको पाने की खातिर
की गई कितनी ही हत्याएँ ।

सौ बात की एक बात, जो
कहे कवि भवानंद आज,
कर्म और परिश्रम करोगे तो
रहूँगी उनके पास जरूर ।

घन की है तीन गति
चाहे तो कर लो उपयोग,
हो ज्यादा तो करो कुछ दान
नहीं तो हो जाएगा नाश ।

भवानंद सिंह
उ. मा. वि. मधुलता
रानीगंज, अररिया

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