टूटती कविता-गिरिधर कुमार

टूटती सी कविता रंग चटखने लगे हैं इसके परेशान है कविता कोलाहल से किसी कोविड से किसी यास से किसी ब्लैक रेड फंगस के संताप से। बिखरती चेतना से सहमती…

कोरोना कविता और कवि-गिरिधर कुमार

कोरोना कविता और कवि लिख रहा हूं कविता, झांकता है कोरोना ठीक सामने की खिड़की से… अट्टहास करता है वो परिहास के स्वर हैं उसके कवि! भोले कवि तुम्हारी कविता…

यक्ष प्रश्न-गिरिधर कुमार

यक्ष प्रश्न पूछे जाते रहे हैं सवाल कभी हमसे तुमसे युधिष्ठिर से परम्परा रही है यह नियति की उत्तर ढूंढ़ना होता है कभी हमें कभी तुम्हें कभी युधिष्ठिर को यह…

और फिर कोरोना-गिरिधर कुमार 

और फिर कोरोना यह क्या कसौटियां खत्म नहीं होती! कितनी बार कितनी परीक्षाएं कितनी उदासियां कौन सी सीमायें हैं इसकी सारा कुछ तो है कसौटी पर हम हमारे बच्चे हमारा…

वह शिक्षक हैं-गिरिधर कुमार

 वह शिक्षक हैं बच्चे, स्कूल कक्षा, कोलाहल अपेक्षाएं अपरिमित सीमाएं और वह शांत है, सजग है, सुदृढ़ है वह शिक्षक है।  प्रशंसा की विचलन से अनजान वह आश्वस्त है अपनी…