युवापराक्रम- संजय कुमार

उठो,जागो और आगे बढ़ो विवेकानंद जी का ये नारा, शून्य की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या कर बनें विश्व की आँखों का तारा। तर्क अनेकों दिए उन्होंने करता हूँ मैं उनको नमन, जीत…

मनहरण घनाक्षरी- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

विधा: मनहरण घनाक्षरी राष्ट्र के हैं दिव्य लाल, सौम्य तन उच्च भाल, ज्ञान बुद्धि प्रेम के वे, निर्मल स्वरूप हैं। बाल्य नाम नरेन्द्र है, कर्मयोगी नृपेन्द्र है, देशभक्ति धर्म हेतु,…

श्रीराम राज्याभिषेक- जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

मनहरण घनाक्षरी छंद सफल हों सारे काज, राम होंगे युवराज, राजदरबार संग, हर्षित समाज है। बड़े-बड़े भूप आए, भेंट उपहार लाए, अयोध्या में अब भाई, होगा रामराज है। पुलकित महतारी,…

हालात से मजबूर- जैनेन्द्र प्रसाद रवि

जीवन के कई रंग, लोग यहां लड़ें जंग, ठंड से ठिठुरे, नहीं चादर है पास में। कोई नहीं देखे अभी, दरवाजे बंद सभी, गली में भिखारी खड़ा- भोजन की आस…

शीत का भरण है- एस.के.पूनम

विद्या:-मनहरण घनाक्षरी ठंडी-ठंडी हवा चली, शीत यहाँ खूब पली, आलाव है जल पड़ी,ठंड में शरण है। अंशु-अंशु कह पड़ा, करबद्ध रहा खड़ा, न जग से छीने ताप,शीत में मरण है।…

प्रकृति और मनुष्य- रणजीत कुशवाहा

प्रकृति है जीवन का आधार। मनुष्य ने किया इससे खिलवाड़।। गगनचुंबी इमारत की जाल बिछाई। धरा पर कंक्रीट रुपी जंगल फैलाई।। पेड़-पौधे की अंधाधुंध कर कटाई। कृषि योग्य उपजाऊ भूमि…

मैं खुश हूं कि- रणजीत कुशवाहा

मैं खुश हूं कि क्योंकि मैं थोड़ा बहुत कमा लेता हूं, यानि बेरोजगार तो नहीं हूं , जो बेरोजगार लोग होंगे उनका जीवन यापन कितनी कठिनाई से गुजरती होगी। मैं…

रुप अनेक पर मैं इक नारी हूं-रणजीत कुशवाहा

अपने पापा की प्यारी परी हूं। जननी मां की राज दुलारी हूं।। बड़े भैया की बहना न्यारी हूं। बाबुल के अंगना की फूलवारी हूं ।। मैं तो दो जहां की…