अनमोल व अदृश्य मित्र-विजय सिंह नीलकण्ठ

अनमोल व अदृश्य मित्र   निराशा से मन भरा हुआ था आशा कहीं न दिखती थी सामने होते स्वादिष्ट व्यंजन पर न कोई जॅंचती थी। कारण था मुॅंह की बीमारी…