श्रम का मोल – संजीव प्रियदर्शी

श्रम तो है अनमोल जगत में महिमा इसकी अतुल-अपार जिसने मूल पहचाना इसका कदमों में पाया निखिल संसार श्रम ईश्वर है श्रम ही पूजा, है यह जीवन का आधार श्रम…

हिन्दी – संजीव प्रियदर्शी

सकल धरा का स्वर बनी जो,शब्द का विज्ञान हिन्दी है मातृ भाषा हम सबों की, राष्ट्र की पहचान हिन्दी वणिक चरवाहे शिक्षक मजूर, खेतों में किसान हिन्दी मातृभूमि पर मिटने…

मैं बिहार हूँ- संजीव प्रियदर्शी

मैं बिहार हूँ सत्य की उद्घोषणा मैं, शून्य का आविष्कार हूँ। शल्य चिकित्सा का प्रणेता, विज्ञान का चमत्कार हूँ। इतिहास का मैं स्वर्ण युग, भारत का आकार हूँ। हाँ,मैं बिहार…

पहली होली-संजीव प्रियदर्शी

शादी के उपरान्त फाग में, मैं पहुँचा प्रथम ससुराल। जूता पतलून थे विदेशी, सिर हिप्पी कट बाल। ससुराल पहुंचते साली ने मधुर मुस्कान मुस्काई। हाथ पकड़ कर खींची मुझको फिर…

मकर संक्रांति- संजीव प्रियदर्शी

स्वागत करें उत्तरायण रवि का हम सब मिलकर आज। और उड़ाएं नील गगन बीच पतंगों की परवाज। कहीं तिल की सौंधी सुगंध है, कहीं गुड़ की लाई। कहीं खिचड़ी, कहीं…

आओ सब मिल वृक्ष लगाएं-संजीव प्रियदर्शी

आओ सब मिल वृक्ष लगाएं आओ सब मिल वृक्ष लगाएं पर्यावरण को स्वच्छ बनाएं धरा पर थोड़ा वृक्ष बचे हैं शेष स्वार्थ की बलि चढ़े हैं जिधर देखो धुआं-धुआं है…

हर जंग जीते हैं जीतेंगे इसे-संजीव प्रियदर्शी

हर जंग जीते हैं जीतेंगे इसे वक्त के मिजाज को यूं भांप रखो घर से बाहर‌ चेहरा ढांक रखो। अभी साथ-साथ रहना ठीक नहीं हर वक्त दो गज दूरी माप…