मकर संक्रांति- संजीव प्रियदर्शी

sanjiv

स्वागत करें उत्तरायण रवि का
हम सब मिलकर आज।
और उड़ाएं नील गगन बीच
पतंगों की परवाज।
कहीं तिल की सौंधी सुगंध है,
कहीं गुड़ की लाई।
कहीं खिचड़ी, कहीं दही-चूड़ा,
जनमन को है भाई।
मकर राशि पर देख अवि को,
शिशिर सेना भयभीत हुई।
ज्यों ठीठुरन कुहरे-जाड़े पर
कुसुमाकर की जीत हुई।
कहीं पोंगल कहीं माघ-बिहू,
कहीं नाम लोहड़ी है।
कहीं शिशुर कहीं मकर संक्रांति
और कहीं खिचड़ी है।
धर्म- दान का यह उत्सव है,
सुख समृद्धि को लाता।
सालों से पैठे जन- मल को,
है क्षण में दूर भगाता।
सदा रहे संक्रांति उर में,
ले रवि- सा आकार।
मिट जाए जन का भव-बाधा
औ सुखी रहे संसार।

संजीव प्रियदर्शी
मौलिक
फिलिप उच्च माध्यमिक विद्यालय,
बरियारपुर, मुंगेर

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