मकर संक्रांति-मनोज कुमार

Manoj

मकर संक्रांति

सही में, इ गजबे परब है।

ठंडा को ठोककर, सुबह में उठना,
निप पोत ठीककर, डुबकी लगाना।
कमाया है जो कर, हक जानो सबका।
दान दक्षिणा देकर, वंदन करो प्रभु का।
सही में, इ परब है गजब का।

काले गोरे का अनुपम मेल है।
छोटे बड़ों में न ठेलम ठेल है।
यहाँ तो देखो स्नेहिल खेल है।
गुण में गजब पर नजरों से ओझल
छोटे छोटे बिखरे काले काले तिल है,
मिट्ठे की मस्ती, गर्मी की किस्ती,
हिल मिल एक जन, बन गई हस्ती।
सही में, इ गजबे परब है।

काले उड़द में, गर्म तासीर है,
चावल संग दूध, शक्ति असीम है।
तिल गुड़ की जोड़ी, बड़ी कमसिन है।
कई जन एक बन, खिचड़ी मेडिसिन है।
चार जन न खाए, इ पर्व के दुर्दिन है।
सही में, इ गजबे परब है।

गुल्ली डंटा के दिन, अब न आई
गोली के टीप्पो, कब्बो न सुनाई
कउआ डिलोह, नजर न मिटाई
डोल पात के बंदर, अब न बुलाई
पिछुआरी में फेंक लकड़ी, अब न दउराई
बच गइल गुड्डी डोरी, कब तक न तोड़ाई।
सही में, इ गजबे परब है।

दक्षिण से उत्तर में, सूर्य का सफर है
धनु से मकर राशि, जाने का जश्न है
उत्तरी गोलार्द्ध में, भारत का भाग्य है
दक्षिणी गोलार्द्ध में, सूर्य जब साथ है
उत्तर के हालात रात बड़ी, दिन छोटे;
प्रकाश कम, मौसम ठंड, होता बदरंग है।
देवों के रात मानो यह अशुभ काल है।
उत्तर में सूरज का जब होता गमन है
रात का रंग कम, दिन रहे दमादम
प्रकाश टहक, मौसम लहक, तन चहक है।
देवता का दिन जान, इसका ठसक है।
सही में, इ गजबे परब है।

पृथ्वी के प्राण वायु, सूर्य का सहारा;
इसकी महत्ता को, शास्त्र ने स्वीकारा;
भगीरथ ने इसी दिन, मां गंगा को लाया;
भीष्म ने स्वेच्छा से, शरीर को है त्यागा;
पतंग संग आसमान, हमको है चुमना;
पर डोरी की छोड़ी, धरती पे है रखना।
ऋतु परिवर्तन का, यह आरंभ काल है;
ऋतुराज वसंत के, आहट का पैगाम है;
सही में, इ गजबे परब है।


मनोज कुमार
सहायक शिक्षक
राम आशीष चौरसिया उ म वि धानेगोरौल प्रखंड गोरौल जिला वैशाली

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