माता पिता-स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’

Snehlata

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माता पिता

मात पिता धन मानिये, दियो शरीर बनाय।
ता पर माँ ममतामयी, प्रथम गुरु बन धाय।।

खेल कूद कर बढ़ रहे, अब देखो कुलराई।
शिक्षा शिक्षक के बिना, खोज रहे अकुलाई।।प्रकृति संगति सब लखै, सब मिल देत सिखाय।
शिक्षक सब संग जाइके, करते सुगम उपाय।।

बिन शिक्षा सब पशु बनें, बिन शिक्षक पशुराय।
धन्य हैं शिक्षक धरनी पर, मानुज दियो बनाय।।

संत असंत कुसंगतहिं, बनत कहत कविराय।
गुरु ज्यों संग कुसंगतहिं, निर्मल बनत सुहाय।।

मन ज्यों सुनत है आपनो, पढ़त लिखत कई रंग।
शिक्षक मन संग राखियो, करे प्रखर सब रंग।।

राह दिखाये संग चले, जबतक चेतना नाहीं।
शिक्षक हिय में हैं बसें, नित उठ दियो सिर नाई।।

स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’

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