राष्ट्र निर्माता: शिक्षक – पुष्पा प्रसाद

एक शिक्षक अपनी पूरी जिंदगी बच्चों के साथ बिताते हैं। खुद सड़क की तरह एक जगह रखते है पर विद्यार्थी को मंजिल तक पहुँचा देते हैं। कोई पेशेवर खिलाड़ी नहीं…

बेटी की विनती – दिव्या कुमारी

पापा खूब पढ़ाओ, आगे मुझे बढ़ाओ। शिक्षा का दीप जलाकर, पापा आप इतराओ।। पढ़ा-लिखा पैरों पर अपने, खड़ा मुझे कराओ। बेटी बोझ नहीं पापा की, दुनिया को समझाओ।। बेटी को…

मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

सिर घुँघराले लट, तन पीतांबर पट, बहुत है नटखट, साँवरा साँवरिया। मंत्र मुक्त होता कवि, जाता बलिहारी रवि, मन को लुभाती छवि, होंठों पे बाँसुरिया। जाता पनघट पर, ग्वाल-बाल मिलकर,…

छंद: गीतिका – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

बच्चों को सिखलाना होगा। सही मार्ग ले जाना होगा।। बच्चे तो हैं मन के सच्चे, यही कर्म दुहराना होगा। होते हैं मृदु माटी जैसे, कंचन धवल बनाना होगा। इनसे आलय…

मनहरण घनाक्षरी:- एस. के. पूनम

शीर्षक: कभी रथ खींचिए मंदिर की ओर चलें, मिलेगी जीने की राह, जय बोलो जगन्नाथ, नमन तो कीजिए। हजारों हैं तेरे नाम, अद्भुत हैं तेरे काम, उषाकाल नाम जपें, आशीष…

विधा- रूप घनाक्षरी: जैनेन्द्र प्रसाद रवि

किसान “”””””””””””””””” फसल बोने के पूर्व, खेतों की जुताई हेतु, सुबह ही चल देते, हल बैल ले के संग। हरियाली देख कर, चेहरे हैं खिल जाते, किसानों के हो जाते…

खुद मनुष्य बन, औरों को मनुष्य बनाओ- गिरीन्द्र मोहन झा

सदा कर्मनिष्ठ, सच्चरित्र, आत्मनिर्भर बनो तुम, जिस काम को करो तुम, उससे प्रेम करो तुम। नित नई ऊँचाई छूकर, सदा आगे बढ़ो तुम, यदि कर सको तो, जरुरतमंदों की मदद…