वेद-वेदान्त की है उक्ति यही, सदा बनो निर्भीक, कहो सोsहं , उपनिषद कहते हैं, ‘तत्त्वमसि’, तुम में ही है ‘ब्रह्म’, तू न अकिंचन। ऋषि व्यास जी ने है रचा, शुभकर…
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सागर और नदी -गिरीन्द्र मोहन झा
सागर ने नदी से कहा- सरिते! लोग कहते हैं, तुम नदी समान बनो, चलो, निरंतर चलो, विघ्नों को लाँघकर, अनवरत आगे बढ़ो, नदी ने सागर से कहा- तात! मेरी शरण…
मृत्यु -गिरीन्द्र मोहन झा
मृत्यु अटल है, शरीर की, मरण असम्भव, जमीर की, मृत्यु यदि मिले सुमृत्यु तो, देश हित, लोक हित में हो, यह मृत्यु अमर बना देती है, उच्च विचार, उच्च आदर्श…
किसने रोका है? – गिरीन्द्र मोहन झा
किसने रोका है? अंधेरा घोर घना है, एक बत्ती जलाने से किसने रोका है? प्रदूषण बहुत ही है, एक पेड़ लगाने से किसने रोका है? निराशा है चारों ओर, उर…
लक्ष्य और दिशा- गिरीन्द्र मोहन झा
लक्ष्य से अधिक है दिशा महत्त्वपूर्ण, सही दिशा में सतत करते रहो प्रयास, यदि दिशा सही हो, तो तू अगर नहीं, कोई और पीढ़ी जाएगी लक्ष्य के पास, इतना ही…