आजादी का मर्म बताने युवाओं को आया हूं,
वीरों की उन शहादतों की याद दिलाने आया हूं,
गुलामी की दासताओं का दर्द सुनाने आया हूं,
आजादी का मर्म बताने युवाओं को आया हूं।
बातें उन दिनों की है जब बेड़ियों में
जकड़ा देश हमारा था,
त्राहि-त्राहि लोग कर रहे
जुल्मों सितम करारा था,
फिरंगियों की दास्तानों से
थर्राया देश हमारा था,
खिलाफ बोलने वालों की
सरेआम चमड़ी उधेड़ी थी।
अंग्रेजों के जुल्मों ने मन में उबाल मचाया था,
विरुद्ध बोलने की हिमाकत
नहीं किसी ने उठाई थी,
यातनाओं से तंग आ चुका
एक वीर मर्द पुराना था,
सपूत वो कोई और नहीं
मंगल पांडे का जमाना था।
धीरे-धीरे आग की लौ
पूरे देश में थी फैल गई,
गुलामी के दंश के बीच
आजादी की हवा फैल गई,
कुंवर सिंह और झांसी ने
मोर्चा खूब संभाला था,
उनकी शहादत को देश ने
सीने में बड़े संभाला था।
परतंत्रता के घाव पर
बापू ने मरहम लगाई थी,
लाल बाल पाल की तिकड़ी ने
आजादी की झलक दिखाई थी,
खूनी खेल, खेल रहे फिरंगी को
सबक सबने सिखाई थी,
सभी के प्रयासों से अंत में
आजादी हमने पाई थी,
सोने की चिड़ियां को आज
आजादी के मर्म का भान है,
फिर हम क्यूं भूल गए उन वीरों को
जिसका सभी को ज्ञान है,
एक बार पुनः उन यादों को
ताजा करने आया हूं,
आजादी का मर्म बताने युवाओं को आया हूं।
जिस आजादी के लिए
कुर्बानी दी जहान रे,
यूं ही हम भूल रहे
खो रहा हमारा मान रे,
जागो उठो अब चुप न रहो
जुल्मों का तुम प्रतिकार करो,
खुद करो औरों को बोलो
आजादी का गुणगान करो,
भूल रहे उन मर्मों की याद कराने आया हूं,
वीरों की उन शहादतों की याद दिलाने आया हूं,
गुलामी की दसताओं का दर्द सुनाने आया हूं,
आजादी का मर्म बताने युवाओं को आया हूं।
बीती यादों को ताजा कर सबक सिखाने आया हूं,
हुंकार भरने आया हूं,
संकल्पित करने आया हूं,
देश भक्ति का भाव जगा सपना साकार करने आया हूं।
अमन चैन संग मिट्टी की सौंधी खुशबू बिखेरने आया हूं,
वंदे मातरम् के गान का अर्थ बताने आया हूं,
आजादी का राग सुना
जज्बात जगाने आया हूं,
वीरों की कहानी याद दिला
आजादी का मर्म बताने युवाओं को आया हूं।
Vivek Kumar