ऐसी हो अपनी हिन्दी
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ऐसी हो अपनी हिन्दी
कि इंसान में इंसानियत बची रहे
दादी की कहानियाँ
गूगल से भी गहरी सच्चाई बनें
ऐसी हो अपनी हिन्दी
जैसे बारिश की पहली बूँद
या माँ की लोरी का आत्मीय सुकून
किसान के हल की मूठ में
छात्र की कॉपी की लिखावट में
और प्रेमपत्र की स्याही में घुली हो
ऐसी हो अपनी हिन्दी
जो तमिल, बांग्ला, पंजाबी से मिल जाए
और हर बोली को अपना अंश माने
वह टेढ़ी-मेढ़ी सही
पर अपनेपन से भरी हो
जैसे पुरानी चिट्ठियों में
ठहरी रहती है एक पूरी उम्र
ऐसी हो अपनी हिन्दी
जो बोलते ही लगे
कि अब घर लौट आए हैं।
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