काव्य लेखन – Alahm reja

जाड़े की रात पहाड़ पर रो रहा है एक हिरन खेल में मदमस्त भटक गया है वह राह

वह नन्हा हिरन उसके लिए बहुत दुखी हूँ मैं उसकी दो खुली आँखों में वेदना है कितनी !

हिरन के छौने रे, हिरन के छौने रो मत, सो जा आराम से जरूर मिलेगी तेरी माँ तुझे ! सो जा, सो जा

बाँस के वन, पाइन ऑक के वन रात की हवा तुझे लोरी सुना रहे हैं। डर मत, बेहिचक सो जा

आकाश में हैं तारे भरे नीचे झरे ढेर के ढेर पत्ते कितने नरम हैं हिरन के छौने, सो जा !

सो जा सुबह तक सूरज उगेगा उसकी सुनहरी किरणें छुएँगी जंगल के पत्तों को मिल जायेगी तुझे तेरी माँ रो मत, मत रो, नन्हे हिरन

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply