विद्यालय के प्रांगण में,
है झूलती आम की डाली।
उससे अक्सर आती जाती,
कतिपय गिलहरियाॅं मतवाली।।
बच्चों की किलकारी सुनकर,
फूर्र-फूर्र फूर्रर हो जातीं।
बच्चे उनकी ओर भी आते,
चूँ चूंँ करतीं वह चिल्लातीं।।
उन्हें भागतीं देखकर
बच्चे हो जाते निहाल।
सुंदर-सुंदर बोली उनकी,
सुंदर-सुंदर मृदुल बाल।।
बच्चे के संग वो खेलती,
करती आँख मिचौली।
स्नेहिल भाव उमड़ते ऐसे,
जैसे पुराने हम जोली।।
गुल्लू ने ऐसा सोंचकर,
लगा उन्हें फुसलाने।
मूंगफली मेवा मिश्री से,
लगा उन्हें ललचाने।।
इतने मेवा मिश्री पाकर भी,
नहीं लालच में वो आई।
तब विवश होकर गुल्लू ने,
उस पेड़ पर की चढ़ाई।।
डाली पर चढ़कर उसने,
उसको किया इशारा।
हाथ से जब छूटी डाली,
नीचे गिरा बेचारा।।
नीचे गिरा बेचारा,
जोर से वह चिल्लाया।
आस-पास के बच्चे,
दौड़कर उसे उठाया।
उसे पता क्या था
फट गया उसका सर है।
तेजी से घर तक जा पहुँची
हाय! ये तो बुरी खबर है।
भागा आनन- फानन में,
और पहुॅंच गया अस्पताल।
तब जाकर इस घटना की,
घर वालों ने की जाँच- पड़ताल।।
बच्चे भावुकता में तुम,
इतना भी मत खो जाना।
जिस डाल पर खुद बैठे हो,
उसको न काट गिरा जाना।।
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रधानाध्यापक, मध्य विद्यालय दरबेभदौर