चालाक नही ; बुद्धिमान बनो ,
कर्मवान बनो ; द्युतिमान बनो ।
अपमान नही ; सम्मान करो ,
सबका हित समान करो ।
अतिशय की भूख नही अच्छी ,
अतिशय की चाह नही सच्ची ।
कोमल बन कुछ काम करो ,
सबके हित तू नाम करो ।
चालाकी से केवल अपना हित ;
दूसरों की चिंता कभी नही ।
जैसे भी लाभ मिले इसमें ,
दूसरों की उन्नति कभी नहीं ।
चालाक नहीं ; बुद्धिमान बनो ,
कर्मवान बनो ; द्युतिमान बनो ।
कट जाए किसी का गला भी गर,
यदि लाभ परिलक्षित होता है ।
इसी घटियापन को
चालाकी कहते ,
क्या यही मूल्य ; मानव का होता है ?
चालाक नही ; बुद्धिमान बनो ,
कर्मवान बनो ; द्युतिमान बनो ।
निज का जीवन खुशहाल रहे ,
पर की कातरता बनी रहे ।
दूसरों का दुःख जो भी हो ,
पर अपनी शान हमेशा तनी रहे ।
चालाक नही ; बुद्धिमान बनो ,
कर्मवान बनो ; द्युतिमान बनो ।
क्या यही मानव का जीवन है?
क्या यही मनुज का सुख सारा ?
क्या बुद्धि हमारी इतनी घटिया ,
क्या हर सुख मिले ,
चालाकी द्वारा ?
चालाक नही ; बुद्धिमान बनो ,
कर्मवान बनो ; द्युतिमान बनो ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड – बंदरा (मुज़फ़्फ़रपुर )