📖 “ज्ञानदीप” 📖
✍️सुरेश कुमार गौरव
कर्मों के द्वार बदलते रहे,शिक्षा रुपी फूल खिलते रहे।
कभी यहां तो कभी वहां,शिक्षा अभिलाषी मिलते रहे।।
कर्त्तव्य-पथ पर कोंपल-किसलय,आगे चल उभरते रहे।
इस ज्ञान स्थली में, कई आशाओं के फूल पनपते रहे।।
जो फूल थे कुछ मुरझाए, उसमें नव सृजन रंग भरते रहे।
उम्मीद और विश्वास रुपी,भविष्य के सूत्रधार बनते रहे।।
मुख मोड़े जो इस शिक्षा-पथ से, फिर उन्हें संभालते रहे।
शिक्षा लोक के प्रहरी बन, इस ज्ञानदीप को जलाते रहे।।
पग-पग पर आई कठिनाईयां, इस सुपथ पर चलते रहे।
आसान नहीं इन्हें स्थायित्व देना,जीवन इनका गढ़ते रहे।।
किया ऊर्जा का उपयोग भरपूर, सीढ़ियां अपनी चढ़ते रहे।
गिरे ,फिसले,फिर उठे,संभले, फिर ध्यान लगा पढ़ते रहे।।
है ये मार्ग ज्ञान मंदिर में जाने का, ये ज्ञान गीत सुनते रहे।
सीख लिए,जान लिए, बारी आई बोलने की बोलते रहे।
जान लिया साक्षर-निरक्षर का भेद,पाठ्य-पुस्तक पढ़ते रहे
अभ्यास,पुनरावलोकन, फिर प्रश्नों के उत्तर भी लिखते रहे।
कर्मों के द्वार बदलते रहे, शिक्षा रुपी फूल खिलते रहे
कभी यहां तो कभी वहां, शिक्षा अभिलाषी मिलते रहे।
@सुरेश कुमार गौरव, शिक्षक, पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित
सुरेश कुमार गौरव