आओ सुनाएं एक कहानी
झांसी की महारानी की
निज शौर्य पराक्रम से लिख दी जो
नाम अमर बलिदानी की
अंग्रेज़ों का कर संघार
मस्तक पर तिलक लगाई थी
कालरात्रि थी या जगदम्बे
या वो चण्डी भवानी थी।
मोरोपंत तांबे की बेटी,
चरित्र था जिनका बड़ा उदार।
सैन्य घेरना दुर्ग तोड़ना,
मनु के थे यह प्रिय खिलवाड़ ।
बरछी, ढाल, कृपाण,कटारी,
संगी सहचारिणी थी।
कालरात्रि थी या जगदम्बे,
या वो चण्डी भवानी थी।
आत्मविश्वासी,स्वाभिमानी, कर्त्तव्य परायण नारी थी।
गंगाधर राव के प्राणों की वह
ना जाने कितनी प्यारी थी।
चतुराई और बुद्धिमता संग,
घुड़सवारी में “नाना” को भी पछाड़ी थी।
कालरात्रि थी या जगदम्बे
या वो चण्डी भवानी थी।
अफसोस बड़ा हम भूल गए,
अंग्रेजों की खूनी चालों को।
जो लहु हमारा पीते थे,
उन रक्त पिपासु कालों को।
बन काल रात्रि वह नाम मिटाई,
सचमुच वह रूद्रानि थी।
कालरात्रि थी या जगदम्बे,
या वो चण्डी भवानी थी।
जब मौत ने आकर दस्तक दी,
रानी ने कमर तलवार कसा।
ले दामोदर को पीठ पे वो ,
पी ली थी आजादी का नशा।
रानी एक शत्रु बहुतेरे,
सबका शीश उड़ाई थी।
कालरात्रि की या जगदम्बे
या वो चण्डी भवानी थी।
लाख मुसीबत में भी जो,
घिरकर कभी न हारी थी।
सन सत्तावन की विद्रोह में
शमशीर उठाईं भारी थी।
आजादी की बलि वेदी पर,
हंसकर खुद को वारी थी।
कालरात्रि थी या जगदम्बे,
या वो चण्डी भवानी थी।
स्वरचित:-
मनु रमण चेतना
पूर्णियां जिला