दोहावली
फागुन भावन जब सरस, घुलते प्रेमिल रंग।
पावन पूनम प्यार में, दिखती नई उमंग।।
खेलें होली प्यार से, करें नहीं हुड़दंग।
प्रेम भाव में है छुपी, अद्भुत नवल तरंग।।
करें भक्ति प्रह्लाद-सी, लेकर नव विश्वास।
आह्लादित हों जन सभी, यही दिव्य की आस।।
हँसता फागुन झूमता, देख प्रिये का गाल।
हर्षित मन खेले पिया, का पा संग निहाल।।
मन कछार पर बह रहा, सुन्दर स्नेहिल रंग।
यौवन भी गदरा रहा, देख पिया का संग।
हँसी-खुशी का पर्व यह, खूब मनाओ यार।
मधुर पुओं का स्वाद लो, सब मिलकर परिवार।।
ब्रज में करते रास हैं, कृष्ण सभी के साथ।
नाच अनोखा कर रहे, सभी पकड़ कर हाथ।।
पुलकित मन के भाव से, बढ़े प्रेम का हाथ।
यही पर्व का सार है, यह जीवन का साथ।।
भक्त बनो प्रह्लाद-सा, तजो नहीं सत्संग।
मग्न रहो प्रभु प्रेम में, बजा-बजाकर चंग।।
फागुन देता है सदा, अद्भुत नव संदेश।
मधुरिम भाव उमंग का, सुन्दर हो परिवेश।।
बुरे भाव को त्याग दो, चलो प्रेम की राह।
जलती जब है होलिका, करते सज्जन वाह।।
पावन फागुन मास है, रखो मधुर व्यवहार।
राग द्वेष को त्याग कर, बनो शांति-आधार।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ शिक्षक,
मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज,
भागलपुर, बिहार