नूतन वर्ष – रामकिशोर पाठक

लो नूतन वर्ष सनातन का,
आज शुरू होने आया।

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा यही,
प्रथम दिवस है कहलाया।
प्रकृति लिए उल्लास जहॉं है,
कण-कण भी है मुस्काया।
धन-संपदा से पूर्ण धरा,
है नवल पर्ण तरु लाया।
लो नूतन वर्ष सनातन का,
आज शुरू होने आया।

नवल रंग के नव पुष्पों से,
आँचल धरती महकाया।
विन्यास सृष्टि का शुरू हुआ,
रीत युगों से है आया।
नव संवत्सर कहते जिसको,
शुभारंभ उसका पाया ।
लो नूतन वर्ष सनातन का,
आज शुरू होने आया।

धरा ताप मनभावन ऐसा,
वसंत यौवन को पाया।
है मधु गंध चतुर्दिक फैला,
जन-जन को जो हर्षाया।
सृष्टि नियंता महाशक्ति का,
आशीष जहॉं बरसाया।
लो नूतन वर्ष सनातन का,
आज शुरू होने आया।

धर्म आस्था और संस्कृति का,
यह संगम भी कहलाया।
प्रारंभ से काल गणना का,
यही चक्र चलता आया।
उज्जैन पुरी के शासक ने,
विजय चिह्न-सा अपनाया।
लो नूतन वर्ष सनातन का,
आज शुरू होने आया।

विक्रमादित्य की यह गाथा,
बन गणना चक्र बनाया।
विक्रम संवत दुनिया जानी,
वैज्ञानिकता सिखलाया।
है धन्य सनातन संस्कृति जो,
दुनिया को पथ दिखलाया।
लो नूतन वर्ष सनातन का,
आज शुरू होने आया।

रामकिशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज, पटना

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