तीन जनवरी अठारह सौ इकतीस को महाराष्ट्र के सतारा में
एक विलक्षण गुणी प्रतिभा बालिका का अवतरण हुआ।
माता-पिता ने सोच नाम उसका साबित्री भाई फूले रखा
जैसे-जैसे बड़ी हुई अपने माता-पिता के संस्कार सहेजे रखा।
जब हुई बड़ी तो उसने चारों ओर अशिक्षा रुपी अंधकार देखा
फिर सत्रह वर्ष की उम्र में देश का पहला बालिका स्कूल खोला
जनमानस में देख अंग्रेजी शासन को पेशवा राज से ठीक पाया
शिक्षा के दीप जलाने वालों को बार-बार रोका और टोका गया।
पेशवा राज अंधविश्वास,पाखंड घृणित मानसिकता से घिरी थी
सावित्रीबाई इनके विरुद्ध समाज-राष्ट्र सेवा करने की ठानी थी।
भले ही भारतीय जनमानस अंग्रेजी सत्ता को शोषक मानती हो
पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले मुक्तिदाता मानती थीं।
तब देश के कई हिस्सों में फैला हुआ था प्लेग बीमारी जानलेवा
सावित्री बाई स्कूल छोड़ बीमारों के लिए शुरु कर दी जनसेवा।
जब वह जाती स्कूल, तो रास्ते में विरोधी उनपर फेंकते कीचड़
वह स्कूल नहीं पहुंच सकें इसलिए लोग फेंक देते थे गंदे गोबर।
प्लेग से घिरी खुद पति ज्योतिराव फुले के साथ पूरा समय दिया
स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में जीवनपर्यन्त काम किया।
वह अंग्रेजी शासन और अंग्रेज राज शिक्षा की थी हिमायती
अंग्रेजों के कार्य को पेशवा के वनिस्पत मानती थी रियायती।
भले ही तब अंग्रेजी सत्ता काले-गोरे में करती थी गहरा भेद
पर पेशवा दलितों, पिछड़ी महिलाओं के प्रति रखते से विभेद।
तब के अंग्रेजी शासन में कुछेक को शिक्षा का अवसर मिला
यह देख तथाकथितों ने समाज में एक दूसरे के बीच जहर घोला
इसलिए सावित्रीबाई अंग्रेजी शासन काल का समर्थन करती
वहां के पेशवा राज को बिलकुल ही असामाजिक बताती।
उस राज में दलितों और स्त्रियों को बुनियादी अधिकार प्राप्त नहीं थे
इसीलिए सावित्रीबाई को तब के तथाकथित स्वीकार्य नहीं थे।
होते गए सब सजग और चौकन्ने,शिक्षा का अलख जगाते गए
धर्मभीरु और तथाकथित थकते गए शिक्षा के दीप जलते गए।
विदुषी और ज्ञानवंती शिक्षिका माता साबित्रीबाई को मेरा नमन
आप सदा शिक्षा प्रहरियों के बीच रहेंगीं, होती रहेंगे सदा वंदन।
_सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक, पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक