पुस्तक-देव कांत मिश्र

Devkant

पुस्तक

पुस्तक देती ज्ञान है, करो सदा सम्मान।
पढ़े इसे जो मन सदा, पाए अभिनव ज्ञान।।
पाए अभिनव ज्ञान, इसे नित मन में लेखो।
करें सभी गुणगान, सदा तुम करके देखो।।
दिव्य रहेगी चाह, ज्ञान पाने की जब तक।
दूँगी हरदम साथ, यही कहती है पुस्तक।।

पुस्तक अनुपम कोश है, मिलता निर्मल ज्ञान।
पाकर मानव ज्ञान से, जीवन करे महान।।
जीवन करे महान, मित्र हम सच्चा मानें।
सुन्दर है वरदान, इसे नित हमसब जानें।।
भरे ज्ञान भंडार, नित्य लाती है रौनक।
कभी न छोड़ें साथ, दिव्य हम रक्खें पुस्तक।।

पुस्तक पावन जानकर, करें हमेशा प्यार।।
सकल जगत में ज्ञान ही, है अनुपम आधार।।
है अनुपम आधार, इसे हम दिल से जानें।
मिलकर करें विचार, ज्ञान को निर्मल मानें।।
करे सदा उपकार, दिव्य बन जीवन शिक्षक।
पकड़ें इसकी डोर, सदा सिखलाती पुस्तक।।

पुस्तक से नित प्रेम कर, मिलता अद्भुत ज्ञान।
करता जो इसका पठन, बनता जगत सुजान।।
बनता जगत सुजान, शिष्य को पाठ पढ़ाए।
कहलाता विद्वान, तिमिर जग सकल मिटाए।।
नहीं रखें अभिमान, बनें नित ज्ञान प्रचारक।
रखें हृदय में मान, सदा कहती यह पुस्तक।।

पुस्तक पावन मानिए, लेकर मन विश्वास।
देकर अनुपम ज्ञान यह, जीवन करे उजास।।
जीवन करे उजास, इसे हम नित अपनायें।
दूँगी हरदम साथ, इसे सबको समझायें।।
कहता सबको दिव्य, उच्च हो जग में मस्तक।
पाठक रखें सहेज, ज्ञान की प्यारी पुस्तक।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ 
मध्य विद्यालय धवलपुरा,
सुलतानगंज, भागलपुर

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