जीवन एक विश्वास रुपी है अनोखा बंधन,
रक्त के तो कहीं बिना रक्त के कहलाते बंधन,
हर्ष-विषाद,खट्टी-मीठी और अनोखी यादों का,
भरोसे, धैर्य, विश्वास, प्रेम,आशामय रुप का,
पर जीवन एक विश्वास रुपी है अनोखा “बंधन” ।
कई रिश्ते जुड़ते कहलाते रुप मानवीय बंधन,
घर -परिवार के रिश्ते कहलाते हैं रक्तबंधन,
प्रकृति ने हम पर किया बड़ा पुनित उपकार,
कईयों ने किया एक दूजे से घृणित अपकार,
पर जीवन एक विश्वास रुपी है अनोखा “बंधन” ।
कोई अपना है तो कोई कहते कि पराया है,
पर यह भेद तो मानव ने ही सिखलाया है,
मानव सेवा धर्म सबसे बड़ी पूजा कहलाती,
कर्त्तव्य पर आरुढद रहना भी खूब सिखाती,
पर जीवन एक विश्वास रुपी है अनोखा “बंधन” ।
एक अनाम रुप धरकर नवरुपा बन आती,
घर-गृहस्थी जीवन की वो गृहिणी कहलाती,
पति-पत्नी बंधन में बंध कहलाते गठबंधन,
एक सूत्र में बंधकर रहे उसे कहते प्रेमबंधन,
पर जीवन एक विश्वास रुपी है अनोखा “बंधन”।
रिश्ते-नाते और आचार-विचारों में जब सब बंधते,
कोई आते और कोई जाते इस रीत को हैं साधते,
जीवन में धूप-छांव का बनता जब एक नया रुप,
जीव-जगत के बदलते ही जाते तब कई स्वरुप,
पर जीवन एक विश्वास रुपी है अनोखा “बंधन”।
रीति-रिवाजों,कर्म-अनुष्ठानों, प्रबंधों का बंधन
रंग-रुप, भेष-भाषा,जाति-भेद के होते कटुबंधन
मानव के बीच गहरी खाई, उग आई भ्रांतियों,
कुपरंपराओं कुमान्यताओं के निरर्थक बंधन,
पर जीवन एक विश्वास रुपी है अनोखा “बंधन”।
@सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक, पटना बिहार
स्वरचित और मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित