बिहार की अस्मिता – एक नई पहचान
नाम से नहीं, चेहरे से नहीं,
ये पहचान बिहार की माटी से है।
गंगा की लहरों में बसी है जो,
और बुद्ध के मन की शांति से है।
हाथों में डिग्री, आँखों में इंतज़ार है,
ये कैसा अजीब, ये कैसा सफर है।
किताबों का ज्ञान अब बेमानी लगता है,
हर गली में बस, मायूसी का शहर है।
इतिहास की कहानियों से,
हर उस संघर्ष की गाथा से है।
जो मगध की धरती पर लिखा गया,
और ज्ञान के हर पाठ से है।
लोग पूछते हैं, “क्या करते हो आज?”
ये सवाल चुभता है, हर बार एक नया ज़ख्म देता है।
सपना कुछ और था, रास्ता कुछ और है,
ये पेट की भूख, हर ख्वाब को कुचलता है।
ये अपनापन की एक डोर है,
जो हमें एक-दूसरे से जोड़ती है।
ये कोई बाहरी बनावट नहीं,
ये तो भीतर से एक पुकार है।
हमारी हर उस लड़ाई से है,
जो जीत से ज्यादा सीख देती है।
ये दुनिया का शोर नहीं,
ये तो अपनी ही आवाज़ है।
