जननी थी यह ज्ञान की, वैदिक युग का मान था,
गौतम की तपभूमि बन, बुद्ध का संज्ञान था।
विष्णु का वरदान पाकर, जन्मा यह प्रदेश था,
जनक की थी भूमि पावन, सीता का संदेश था।
नालंदा की दीपशिखा, गगन में जो प्रखर जली,
विश्व के हर कोने तक,भारत की यह ध्वनि चली।
अशोक सम्राट जब बना, शांति का संकल्प था,
चक्रधर की भूमि का, इसका न कोई विकल्प था।
पलटा जब इतिहास का, कालचक्र जब घूमता,
तुर्क, अफगान, मुग़ल सभी, संग बिहार चूमता।
शेरशाह का किला बना, नीति का वह ग्रंथ था,
सड़क से संचार तक, प्रशासन का मंत्र था।
विद्रोहों की ज्वाला में, फूंक दिया अंगार को,
बक्सर की रणभूमि ने, छेड़ दिया बिहार को।
कुँवर सिंह की तलवार, झुकी नहीं कभी कहीं,
मातृभूमि की रक्षार्थ, इतिहास बन गई तब यहीं।
चंपारण की भूमि पर, सत्य का जब दीप जला,
महात्मा के पथ से फिर, देश यह आगे बढ़ चला।
जयप्रकाश की हुंकार, लोकशक्ति का मंत्र थी,
संपूर्ण क्रांति से हुई, जन स्वाभिमान की तंत्र थी।
अब विज्ञान, तकनीक में, नाम है बिहार का,
ज्ञान-ज्योति फिर जल रही, जागरण है द्वार का।
नए सपनों की उड़ान, नव निर्माण का शोर है,
प्रगति के हर पथ पर, बिहार का भी जोर है।
अब स्मार्ट हो रहे गाँव, शहर भी हो रहे बड़े,
नए उद्योगों के संग, बढ़ रहे हैं हम खड़े।
आईआईटी, मेडिकल, शिक्षा का विस्तार है,
नव बिहार की ओर हम, बढ़ रहे, यह संचार है।
संस्कृति और कला यहाँ, गूँजती हर बोल में,
मगही, मैथिली, भोजपुरी, सुर बहें अनमोल में।
कवि हृदय रचता “गौरव”, गाता इस इतिहास को,
गौरवशाली बिहार का, पाता नवीन विश्वास को।
सुरेश कुमार गौरव,
‘प्रधानाध्यापक’
उ. म. वि. रसलपुर, फतुहा, पटना (बिहार)