मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

Jainendra

दिन भर काम करे,

कभी न आराम करे,

अकेली सुबह शाम,

भोजन बनाती हो।

हमें विद्यालय भेज,

कपड़े बर्तन धोती,

काम से फुर्सत नहीं,

खाना कब खाती हो?

जब नहीं नींद आती,

हमको सुनाती लोरी,

रातों को तू कब सोती,

कब जाग जाती हो?

बताओ हमारी अम्मा,

सबसे दुलारी अम्मा,

इतना अकेले काम,

कैसे कर पाती हो?

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

म. वि. बख्तियारपुर, पटना

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