माता
जगत में है जो प्यारी,
सारी दुनिया से न्यारी,
युगों-युगों से हमारी,
माता कहलाती है।
हमें लाती धरा धाम,
सहती है पीड़ा घाम,
अंगुली पकड़ हमें,
चलना सिखाती है।
जब हम रोते कभी,
दौड़ी चली आती तभी,
उठा अपनी बाहों में,
पालना झूलाती है।
यदि कभी चोट लगे,
अंखियों से आंसू बहे,
आंचल से आंसू पोछ,
गले भी लगाती है।
२
मां हजारों दुख सहे,
कभी कुछ नहीं कहे,
रात भर आंखों उसे,
नींद नहीं आती है।
आशाओं को छोड़ कर,
बैठे मुंह मोड़ कर,
दो कदम साथ चल,
हौसला बढ़ाती है।
माता की है बलिहारी,
सारे रिश्तों पर भारी,
कभी साथ खेलने को,
दोस्त बन जाती है।
हमें पोस पाल कर ,
कांटों से निकाल कर,
संतति की गुरु बन,
जीना सिखलाती है।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
मध्य विद्यालय बख्तियारपुर,
(पटना)
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