युद्ध नहीं, चाहिए शांतिमार्ग
युद्ध विनाश का सदा से रहा है परिचायक,
प्रतिफल मिल हिंसा का मार्ग है दुखदायक।
भले ही श्री कृष्ण ने युद्ध में साथ दिया हो,
गीता सार का धर्म,कर्म व मर्म तत्त्व दिया हो।
पर देश धर्म की लड़ाई में सच का साथ दिया,
पहले शांति और समझौते का सिद्धांत बताया।
लेकिन धर्मभीरु रहे जमीन वैभव की लालच में,
फिर युद्ध हुआ भयावह निज स्वार्थ की लालच में।
युद्ध में मृत,खून से लथपथ आत्मा दर्द से कराहती,
वे चिल्लाते खून से लथपथ धरती मानो चित्कारती।
अहिंसा जीवन का सूत्र है, जीव दया मानव जीवन मंत्र है,
प्रकृति ने दिया यही सूत्र, यही जीवन जीने का मानो तंत्र है।
फिर सम्राट अशोक ने भी युद्ध किया और पीड़ा झेली,
युद्ध बना मरघट,लोगों की दुर्दशा मानो खून की होली।
मार्ग अहिंसा का थामा अशोक ने, धर्म की नीति मानी,
प्रकृति की बनाई युद्ध नीति नहीं,अच्छी यह बात जानी।
हमें न युद्ध चाहिए और हथियार,अहिंसा का मार्ग चाहिए,
जियो और जीने दो, मानव का मानव से शांति मार्ग चाहिए।
@सुरेश कुमार गौरव,
जिला- पटना (बिहार)
रचना मौलिक व स्वरचित
सुरेश कुमार गौरव