राम नाम है शीर्ष जगत में,
यह खुशियों का आगार है।
भज ले रे मन मीत मेरे,
बिन इसके सब बेकार है।
चाहते हैं कुछ अच्छा करना
राम नाम पहले गायें।
मर्यादा में यदि रहना हो तो
सम्मुख उन्हें सदा पायें।
किससे कैसी प्रीति निभानी,
हम सबने यह लेखा है।
गुणगान करते भाई भरत का,
हर बार प्रभु राम को देखा है।
भले के लिए वे भले बने हैं,
कालों के महाकाल हैं।
दुश्मनों के वे छक्के छुड़ाते,
अवध के श्री भाल हैं।
जनकपुर में जाकर राम ने,
शिव का धनु भी तोड़ा है।
जनक दुलारी सिया संग से,
पिया का नाता जोड़ा है।
पिता वचन सत्य करने को
हँसते-हँसते वन जाते हैं।
कष्ट बहुत ही वन में होते,
पर तनिक न घबराते है।
वन में है संघर्षों की गाथा,
पर स्वपीड़ा नहीं बताते हैं।
पर ऋषि मुनियों का कष्ट देख,
वे द्रवित जल्द हो जाते हैं।
ऋषि मुनियों की रक्षा में,
वे राक्षसों को स्वर्ग सिधारते हैं।
उनके संकट को दूर कर वे,
फिर आगे की राह बनाते हैं।
हरण हुआ जब सीता का,
लौकिकता का भी वरण किया।
पेड़, खग, लता से पूछ पता,
मधुर संबंधों का भी भरण किया।
असत्य को पराजित करने को
वे रावण को मार गिराते हैं।
धर्मनिष्ठ विभीषण को वे,
लंका की राजगद्दी दिलाते हैं।
अवधपुरी में आकर वे,
प्रजावत्सल राजा बनते हैं।
उनके राज में शोक नहीं,
सब निर्भय हो विचरते हैं ।
मर्यादा के रक्षक हैं वे,
मर्यादा का पाठ पढ़ाते हैं।
आदर्श पर चलने को वे,
सदा सच्ची राह बताते हैं।
ऐसे हैं प्रभु राम हमारे,
स्वामी हैं हम सबके प्यारे।
कोई नहीं उनके बिन सुखिया,
सब कुछ प्रेम उन्हीं पर वारें।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बैंगरा
प्रखंड-बंदरा, जिला-मुजफ्फरपुर