- तु केवल लय -ताल नही,
- तू सप्त स्वर आवाज है
- तू धरा, पवन,गगन नहीं
- तू सृष्टि का आगाज है
- न ग्राम नगर न सड़क गली
- तू मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा , नयन नीर तुने पोछे,और जग को दिया, सहारा
- तू नारी बनकर आयी है : सरस्वती, दुगा, लक्ष्मी, तू कभी सुदृढ़ लौह सी,
- तो कभी मुलायम रेशमी है
- पर्वत की तु ऊचांई, और सागर की गहराई ,
- कभी तू बन जाती है सीता,
- तो कभी लक्ष्मीबाई
- वैशाली श्रीवास्तव
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