साईकिल की सवारी अब भी है खूब बड़ी न्यारी,
चुस्त दुरुस्त रखती, प्रदूषण रहित है बड़ी प्यारी।
जब पहली बार हाथ में आई थी यह साईकिल,
चूमा और बढिया से जाना परखा था साईकिल।
आरे तिरछे घुमाता और घंटी बजा चल पड़ता,
मानो अपनी शान की सवारी पर निकल पड़ता।
पड़ा बीमार तब साईकिल भी मानो उदास पड़ी,
साईकिल को चूमा मानो इसे भी दुख आन पड़ी।
स्वस्थ रहने की बात इस साईकिल से ही सीखाई,
निकल पड़ा अपने गंतव्य पर राह इसने ही दिखाई।
कभी कालेज तो कभी सड़क परिभ्रमण की ओर,
जब घंटी बजाता तो लगता संगीत बजती चारों ओर।
याद करुं महान सख्श मैकमिलन को जिससे जोडा़,
भले ही टांग हाथ हुए घायल फिर भी इसे न छोड़ा।
जब भी काम पड़ा,इसी प्यारी साईकिल ने मदद की,
समय की बचत और कई काम भी मेरी आसान की।
कोरोना काल में साईकिल की मांग जब खूब बढ़ी ,
सड़क पर खुद निकलने की इसकी जुगत तब चली।
पुलिस ने भले हरकाया, काम दिखा फिर चल पड़ा,
सोचा कितनी प्यारी दोस्त है, मानो यह बोल पड़ी।
साईकिल की सवारी ने सीखाया इसे मन से चलाओ,
कसरत,व्यायाम भी होंगे और काम भी अपना बनाओ।
साईकिल की सवारी अब भी है खूब बड़ी न्यारी,
चुस्त-दुरुस्त रखती, प्रदूषण रहित है बड़ी प्यारी।
@सुरेश कुमार गौरव,शिक्षक,पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित