स्त्री का सौन्दर्य
ना तो टीका पहनने से है,
ना बिंदी, नथिया,कंगन, चूड़ी पायल पहनने से। लिपिस्टिक,काजल ,गजरा,
झूमका, कमरबंद, बिछिया,
हीरे मोतियों से जड़ी साड़ियों से नहीं ।
उसका सौन्दर्य स्त्री होने में हीं
इतना है कि अन्य सभी
श्रृंगार प्रसाधन फींके पर जाते हैं ।
उन्हें किसी अन्य श्रृंगार की जरूरत नहीं होती।
क्षमा, दया,तप,त्याग, ममता,
लज्जा, समर्पण,शील,साहस, शौर्य
संतोष, धैर्य, मर्यादा, सदाचार
ब्रह्मचर्य,सत्य ,मृदुभाषिणी
स्त्री ,
अपने आप में एक अलौकिक
सौंदर्य धारण किये रहती है।
सचमुच ,
धैर्य का सिंदूर,शील का हार,
सादगी का लिबास,मधुर व्यवहार ,
लज्जा का काजल,
स्वाभिमान की बिन्दी लगाकर ,
सदाचार की खुशबू बिखेरती ,
संसार में प्रेम की बारिश करती,
वह अद्भुत, अनुपम सौंदर्य की
स्वामिनी लगती है।
स्वरचित:-
मनु कुमारी,प्रखंड शिक्षिका, मध्य विद्यालय,सुरीगांव बायसी
पूर्णियां बिहार
सौंदर्य. – मनु कुमारी
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