स्वर कोकिला लता
इस धरा की अनूठी और अनमोल रत्न हैं आप
जीवन भर करती रहीं सु स्वर साधना की जाप।
सदा रहेंगी आप, भारत भूमि की रत्न अनमोल
स्वर संगीत का विश्व में,आप सा नहीं है कोई मोल।
कला जगत की अजेय महारथी आप हैं अमर
देश के लिए जिया और देश के लिए हुई अमर।
मधुर वाणी और सौम्यता आपकी सदा पहचान रही
सादगी व नम्रता जन-जन की आप सदा मुस्कान रहीं।
देश भक्ति की पहचान भी बनीं संगीत साधक भारत नेत्री
कई विधाओं में गाकर सबके हृदय की बनी संगीत नेत्री।
नाम लता स्वरलता,जीवन लता और सबकी प्राण लता
एक तपस्विनी से कम नहीं आपकी जीवन कुसुम लता।
इस ब्रह्मांड की सुर सामाज्ञी बन जीती रहीं लता सदा
आपकी यह अनोखी स्वर सुधा आपकी रही नम्रता अदा।
हम भारत की आन-बान और शान की आप उपमा रहीं
सदा अविवाहित जीवन जीकर कला साधिका बनी रहीं।
है यह स्वांसों का कर्म-बंधन, कल को भला किसने देखा है
इस धरा के सहत्र जीवन ने भी आपको सबने खूब परखा है।
आपकी गायिकी और देश नायिका की छवि रही अद्वितीय
स्वर के महायुग का अंत हुआ आपकी ख्याति रही अद्वितीय
भूल न पाएंगे आप सदा रहेंगी भारत के कोटि कोटि हृदयों में
हर ज़र्रा जर्रा यह कहता रहेगा बसी रहे़ंगी आप सबके हृदयों में
आप सी दिव्य आत्मा संगीत से प्रेम प्रतीति सीखाती रहीं
आपका जीवन परिचय अमर गाथा में नम्रता दिखाती रहीं।
आपके एक संगीतज्ञ की याद को भी किया था मैं लिपिबद्ध
बाल पत्रिका “बालहंस” में तब मेरी रचना हुई थी सूचीबद्ध।
कवि हृदय आज बहुत है व्यथित मर्म, गहरे रुप में आहत
आपसे सब सदा प्रेरणा लें व्यथित कवि हृदय की है चाहत।
✍️सुरेश कुमार गौरव,
उ.मा.वि.रसलपुर,फतुहा पटना (बिहार)