बागों की सुंदरता है, फूल और कलियां ।
“माली तो उसकी जान है”
भंवरे मचल-कर गीत सुनाते,
यही तो उसकी पहचान है।।
यही तो स्वाभिमान है…….।।
काली घटा मंडराती है नभ में,
तूफानी हवाओं का ऐलान है।
“सुरक्षा कवच पर्वत है मेरे”
हमें ना कोई नुकसान है।।
यही तो स्वाभिमान है…..।।
वर्षात की बूंदे दरिया बहाती,
गहराई ही उसकी ईमान है।
“मंद धारा पर कश्तियां-
इठलाती”साहिल को बड़ा अभिमान है।।
यही तो स्वाभिमान है…..।।
कण-कण की हरियाली से,
सजी है वसुंधरा ।
पर्वतऔर झरना इनकी शान, है “मोर-पपीहा की मीठी बोली जग को बड़ा- अभिमान है।।
यही तो स्वाभिमान है…..।।
मन का पतंग उड़ता है गगन में “डोरी कील के समान है”
धैर्य साहस का पुंज बनकर।
मंजिल फूल समान है ।।
यही तो स्वाभिमान है…..।।
जय कृष्णा पासवान
स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा,
बाराहाट (बांका)