हिंद, हिंदी और हिंदुस्तान,
हम सबकी शान,
हम सबकी जान।
पूरब से पश्चिम तक,
उत्तर से दक्षिण तक,
भाषाई सीमा को तोड़कर
पाती है एक नया मुकाम,
हिंद,हिंदी और हिंदुस्तान,
हम सबकी शान,
हम सबकी जान।
चाहे देश या हो प्रदेश,
अभिव्यक्ति में यह है श्लेष,
आमजनों की भाषा बन,
बार बार बनाती ग्रन्थ महान,
हिंद,हिंदी और हिंदुस्तान।
हम सबकी शान,
हम सबकी जान,
हिंद,हिंदी और हिंदुस्तान।
तुलसी,मीरा,कबीर या देव,
दिनकर गुप्त निराला सदैव
शान के जिसके रहे रसखान
हिंद, हिंदी और हिंदुस्तान
हम सबकी शान,
हम सबकी जान।
कन्हैया लाल झा।
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