तब देश के भाषा की जननी और गौरव थी हिन्दी भाषा!
जब समृद्ध हुई तब नाम मिली भारतभूमि की मातृभाषा !!
चहुं ओर पहुंचकर हिन्दी भाषा जन-जन की पुकार बनी !
साहित्यकार,कवियों और नायकों सबकी ललकार बनी!!
हिन्दी आज निशब्द है, अपनी घोर दुर्दशा को देखकर!
कभी भाषा पोषकों ने इसका मान बढ़ाया इसे परखकर!!
मिश्रित भाषाओं की मार से परेशान सी है, भाषा हिन्दी!
जबकि इसे माना जाता,यह है भारत के माथे की बिंदी!!
अंग्रेजियत रही हावी, मूल स्वर हिन्दी के हैं अब गायब!
यही हाल रही तो मातृभाषा हिन्दी हो जाएगी अजायब!!
है अपने देश की आन-बान और शान इससे ही है पहचान!
हम क्यूं न करते चिन्ता और इसकी रक्षा, बनते हैं अनजान!!
तब देश के भाषा की जननी और गौरव थी हिन्दी भाषा!
जब समृद्ध हुई तब नाम मिली भारतभूमि की मातृभाषा!!
@सुरेश कुमार गौरव,स्नातक कला शिक्षक,उमविरसलपुर फतुहा,पटना (बिहार)
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