हिन्दी: हमारी अस्मिता की पहचान – Divya Gupta

हिंदी…..

जैसे एक स्त्री के माथे की बिंदी ।

जैसे नहीं होता श्रृंगार स्त्री का ,

बिंदी के बिना ।

वैसे ही नहीं होता अभिमान हमें हिंदी के बिना ।

अगर सारी भाषाएं एक दूसरे की बहन हैं…

तो हमारी हिंदी,

ये इन्हीं का तो मिश्रण है ।

देशी हो या विदेशी ,जिसने उसको जैसे अपनाया ,

ये उसी की हो गई ।

स्नेह के भाव में ये अग्रसरित हो गई ।

सबको समेटते समेटते मेरी हिंदी महान बन गई ।

मेरी हिंदी आज मेरी शान और अभिमान बन गई ।

                  जय हिंद , जय भारत 

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