हिंदी…..
जैसे एक स्त्री के माथे की बिंदी ।
जैसे नहीं होता श्रृंगार स्त्री का ,
बिंदी के बिना ।
वैसे ही नहीं होता अभिमान हमें हिंदी के बिना ।
अगर सारी भाषाएं एक दूसरे की बहन हैं…
तो हमारी हिंदी,
ये इन्हीं का तो मिश्रण है ।
देशी हो या विदेशी ,जिसने उसको जैसे अपनाया ,
ये उसी की हो गई ।
स्नेह के भाव में ये अग्रसरित हो गई ।
सबको समेटते समेटते मेरी हिंदी महान बन गई ।
मेरी हिंदी आज मेरी शान और अभिमान बन गई ।
जय हिंद , जय भारत
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