बंदर की चतुराई – सुधीर कुमार

Sudhir

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बंदर की चतुराई 

एक बार दो बिल्ली ने,
एक रोटी कहीं थी पाई।
किंतु खाते वक्त दोनों में,
हो गई खूब लड़ाई।

पहली बिल्ली कहती कि,
मैं ही ज्यादा खाऊँगी।
इस पर दूसरी कहती कि,
मैं कम न ले पाऊँगी।

कोई फैसला नहीं हुआ तो,
पहूँचे एक बंदर के पास।
सारी बात बताकर बोले,
कर दो कोई निर्णय खास।

तब बंदर एक घर से,
एक तराजू चुरा के लाया।
बीच से रोटी तुड़वाकर
उन्हें पलड़े पर रखवाया।

थाम तराजू की मुट्ठी,
जब बंदर उसे उठाया।
एक तरफ का पलड़ा कुछ,
झुका हुआ उसने पाया।

थोड़ी रोटी तोड़ के उसने,
उस तरफ से स्वयं खाई।
अब इस तरफ का पलड़ा,
थोड़ा अधिक झुक गया भाई।

अब इस तरफ से भी उसने,
थोड़ी सी रोटी तोड़ी।
डाला उसको अपने मुँह में,
और खा गया थोड़ी थोड़ी।

ऐसे ही करके उसने,
सारी रोटी खा डाली।
मुँह देखते रही बिल्लियाँ,
चल गई होके खाली।

आपस में मत झगड़ों तुम,
वरना होगा अंजाम बुरा।
कोई धूर्त बेइमान तुम्हारे,
पीठ में देगा घोंप छूरा।

सुधीर कुमार

किशनगंज, बिहार

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